12.5.10

यूहीं बे-सबब ना फिरा करो


यूहीं बे-सबब ना फिरा करो
किसी शाम घर भी रहा करो
वो गज़ल की एसी किताब है
उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो

अभी राह में कई मोड है
कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हे जिसने दिलसे भुला दिया
उसे भूलने की दुआ करो

कोई हाथ भी ना मिलाएगा
जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिजाज़ का शहर है
ज़रा फासलेसे मिला करो

मुझे इश्तिहार सी लगती हैं
ये महोबतों की कहानियाँ
जो कहा नहीँ वो सुना करो
जो सुना नहीँ वो कहा करो

[डॉ बशीर बद्र / एल्बम - एहमद हुसैन -मोहम्मद हुसैन ]
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