19.10.16

अकेला होना नियति है



अकेला होना नियति है

– ओशो

कोई दूसरे को थोड़े ही प्रेम करता है, लोग अपने को ही प्रेम करते हैं। पति पत्नी को इसलिए प्रेम करता है कि पति अपने को प्रेम करता है और पत्नी सुख देती है, सुविधा देती है। पत्नी मर जाएगी तो पति दूसरी पत्नी का विचार करने लगेगा। क्यों मरेगा पत्नी के साथ! पत्नी के लिए थोड़े ही कोई प्रेम था, प्रेम तो अपने लिए था; पत्नी का तो उपयोग था।

यहां हम सब एक-दूसरे का उपयोग कर रहे हैं। कोई तुम्हारे लिए यहां नहीं जी रहा है। तुम बिलकुल अकेले हो। जिसे यह बात समझ में आ जाती है कि मैं बिलकुल अकेला हूं, यहां कोई संगी नहीं, कोई साथी नहीं, क्योंकि मौत तो सब संगी-साथी छीन लेगी।

मौत ही जब तुम्हें अकेला कर देगी तो फिर जीवन के संग-साथ का कितना मूल्य है! दो घड़ी साथ चल लिए थे, रास्ते पर संयोग से मिलना हो गया था--नदी-नाव-संयोग। संयोग की बात थी कि तुम एक स्त्री के प्रेम में पड़ गए; संयोग की ही बात थी कि तुम एक बस में सफर करते थे, वह स्त्री मिल गयी; संयोग की बात थी कि तुम्हारे पड़ोस में रहती थी, संयोग की बात थी कि एक ही स्कूल में पढ़ने चले गए थे, संयोग की बात थी प्रेम हो गया, संयोग की बात थी तुम एक-दूसरे से बंध गए और एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी अपने को मानने लगे। एक दिन संयोग टूट जाएगा। जैसे रास्ते पर चलते वक्त कोई मिल जाता है, दो घड़ी साथ चल लेते हैं, फिर रास्ते अलग हो जाते हैं।

मौत सबके रास्ते अलग कर देती है, मौत बड़ी उदघाटक है। मौत चीजों को साफ-साफ कर देती है। जैसी असलियत है वैसा प्रगट कर देती है। हम अकेले हैं, यहां अकेलापन मिटता ही नहीं, न प्रेम से, न मैत्री से, किसी चीज से नहीं मिटता; हम अकेले ही बने रहते हैं। हम चेष्टा कर लेते हैं मिटाने की, अकेलेपन को भुलाने की। लेकिन तुमने कभी खयाल नहीं किया! कभी तुम्हें याद नहीं आती किसी क्षण में कि हम बिलकुल अकेले हैं! पत्नी पास बैठी है और तुम अकेले हो। बेटा पास खेल रहा है और तुम अकेले हो। पिता पास बैठे हैं और तुम अकेले हो। परिवार में बैठे-बैठे कभी तुम्हें यह याद आयी या नहीं कि तुम बिलकुल अकेले हो, कौन किसका साथी है!

और इसका यह मतलब नहीं है कि बुद्ध यह कह रहे हैं कि पत्नी का कोई दोष है कि तुम्हें साथ नहीं दे रही है। पत्नी भी अकेली है। बुद्ध यह भी नहीं कह रहे हैं कि इसमें किसी का दोष है। ऐसा मत करना जाकर घर कि अपनी पत्नी को कहो कि तू मुझे प्रेम नहीं करती है, मैं अकेला हूं। अपने बेटे से कहो कि तू मुझे ठीक से प्रेम कर, क्योंकि मैं अकेला हूं।
नहीं, वे लाख उपाय करें तो भी तुम अकेले हो।

अकेला होना नियति है। इसे बदला नहीं जा सकता। इसे हम भुला सकते हैं, छिपा सकते हैं, मगर इससे छुटकारे का कोई उपाय नहीं। यह स्वाभाविक है। मृत्यु इस अकेलेपन को दिखा देती है।—ओशो

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