12.3.12

एक बौछार था वो - जगजीत के लिए गुलज़ार ....


"गुलज़ार साब की नज़म - जगजीतसिंह के नाम


एक बौछार था वो ....


एक बौछार था वो सख्श बिना बरसे
किसी अब्र की सहमी सी नमी से भिगो देता था ...


एक बौछार ही था वो..... 
जो कभी धुप की अफशां भर के
दूर तक सुनते हुए चेहरों पर छिड़क देता था
नीम तारीक सी होल में आँखें चमक उठती थीं


सर हिलाता था कभी झूम के टहनी की तरह
लगता था जोंका हवा का था कोई छेड़ गया है ...


गुनगुनाता था तो खुलते हुए बादल की तरह
मुस्कुराहट में कई तरबों की झनकार छुपी थी


गली कासिम से चली एक गज़ल की झनकार था वो
एक आवाज़ की बौछार था वो ...."

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