25.12.18

जो तुलना छोड़ देता है, वह आनंद में मग्न हो जाता है

ओशो


एक झेन फकीर से किसी ने पूछा:

तुम्हारे जीवन में इतना आनंद क्यों है?…मेरे जीवन में क्यों नहीं?


उस फकीर ने कहा:

मैं अपने होने से राजी हूं और तुम अपने होने से राजी नहीं हो।

फिर भी उसने कहा,

कुछ तरकीब बताओ।

फकीर ने कहा,

तरकीब मैं कोई नहीं जानता।

बाहर आओ मेरे साथ.....

यह झाड़ छोटा है, वह झाड़ बड़ा है।

मैंने कभी इन दोनों को परेशान नहीं देखा कि मैं छोटा हूं, तुम बड़े हो।

कोई विवाद नहीं सुना। तीस साल से मैं यहां रहता हूं।

छोटा अपने छोटे होने में खुश है, बड़ा अपने बड़े होने में खुश है; क्योंकि तुलना प्रविष्ट नहीं हुई। अभी उन्होंने तौला नहीं है।

घास का एक पत्ता भी उसी आनंद से डोलता है हवा में, जिस आनंद से कोई देवदार का बड़ा वृक्ष डोलता है।

कोई भी भेद नहीं है।

घास का फूल भी उसी आनंद से खिलता है, जिस आनंद से गुलाब का फूल खिलता है। कोई भेद नहीं है।

तुम्हारे लिए भेद है।

तुम कहोगे: यह घास का फूल है, और यह गुलाब का फूल। लेकिन घास और गुलाब के फूल के लिए कोई तुलना नहीं, वे दोनों अपने आनंद में मग्न हैं।

जो तुलना छोड़ देता है, वह मग्न हो जाता है। जो मग्न हो जाता है, उसकी तुलना छूट जाती है।

( सुन भई साधो )


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