शायर मेराज फैज़ अबादी
Ghazal Sung by Lata ji.
फिर कहीं दुरसे एक बार सदा दो मुझको
मेरी तन्हाई का एहसास दिला दो मुझको
तुम तो सूरज हो, तुम्हे मेरी ज़रूरत क्या है ?
मैं दीया हूँ, किसी चोखट पे जला दो मुझको
एक घुटन सी है फ़िज़ा में के सुलगता हूँ मैं
जल उठूँगा, किसी दामन की हवा दो मुझको
में समन्दर हू ख़ामोशी मेरी मजबूरी है
दे सको तो किसी तुफ़ाँ की दुआ दो मुझको
[received in english script via ebazm yahoo email group]
Ghazal Sung by Lata ji.
फिर कहीं दुरसे एक बार सदा दो मुझको
मेरी तन्हाई का एहसास दिला दो मुझको
तुम तो सूरज हो, तुम्हे मेरी ज़रूरत क्या है ?
मैं दीया हूँ, किसी चोखट पे जला दो मुझको
एक घुटन सी है फ़िज़ा में के सुलगता हूँ मैं
जल उठूँगा, किसी दामन की हवा दो मुझको
में समन्दर हू ख़ामोशी मेरी मजबूरी है
दे सको तो किसी तुफ़ाँ की दुआ दो मुझको
[received in english script via ebazm yahoo email group]
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો