21.10.16

मन की खिडकी से हटो। ~~~~~ ओशो ~~~





Osho Fragrance



मेरे पास आ जाते हैं, लोग मुझसे कहते हैं कि हमारा आत्मविश्वास कैसे मजबूत हो? कोई उपाय बताएं।

वे सोचते हैं, बडी आध्यात्मिक खोज कर रहे हैं। आत्मविश्वास कैसे मजबूत हो!

इसी तथाकथित आत्मविश्वास की वजह से तो तुम जन्मों-जन्मों भटके हो।
अब तक टूटने नहीं दिया, अब तक टूटा नहीं।
तुम्हारा आत्मविश्वास टूट जाए तो तुम समर्पित हो जाओ, तो तुम अर्पित हो जाओ प्रभु को।
मगर ये अकड़। कोई कहता है, मेरा संकल्प, विल पावर कैसे मजबूत हो?
क्या करोगे विल पावर मजबूत करके?
संकल्प मजबूत करके करना क्या है?
किसी को धन कमाना है, किसी को पद, किसी को प्रतिष्ठा, साम्राज्य बनाने हैं यश के, गौरव के।
लेकिन कब कौन बना पाया?

तो एक तो हैं सांत्वना देने वाले संत। जो कि झूठे संत हैं।
वे तुम्हारे मन की ही सेवा कर रहे हैं। हालाकि वे तुम्हें प्रीतिकर लगेंगे।
क्योंकि जो भी तुम्हारे आंसू पोंछ देगा, वही प्रीतिकर लगेगा !
और जो भी तुम्हें थपकी देकर सुला देगा और कहेगा कि राजा बेटा, सो जाओ, वही अच्छा लगेगा !
कि कितना प्यारा संत है!

मैं उनमें से नहीं हूं। मैं तुम्हें वही कहना चाहता हूं,जैसा है।
चाहे कितनी ही कड्वी हो दवा, चाहे पीने में तुम कितना ही ना-नुच करो, चाहे तुम भागो, चाहे तुम नाराज होओ, लेकिन जो है, मैं तुमसे वही कहना चाहता हूं।
मैं तुम्हें सांत्वना देने में उत्सुक नहीं हूं।
जगा सकूं तो ठीक, तुम्हें सुलाने में मेरी कोई उत्सुकता नहीं है।

मन जब तक है, तब तक दुख है।
मन जब तक है, तब तक नर्क है।
तुम मन के पार उठो।
मन से बहुत झांककर देख लिया,
अब जरा मन को सोने दो-तुम जागो।

अब मन की खिडकी से हटो।

यही तो अर्थ है ध्यान का। मन की खिड़की से हट जाना।

जब कोई विचार न हो तुम्हारे भीतर-कोई विचार न हो, कोई विचार की तरंग न हो, तब प्यास बचती है?
कभी एकाध क्षण ऐसा पाया जब कोई विचार नहीं है, तुम बैठे हो निर्विचार, निस्तरंग?
उस क्षण कोई प्यास उठती है?
उस क्षण अनुभव होता है कि मैं प्यासा हूं?

उस क्षण तृप्ति ही तृप्ति बरस जाती है।
उस क्षण कोई अतृप्ति नहीं होती।


तो यह तो बहुत छोटा-सा गणित है-
जहां तक विचार है, वहां तक प्यास,
जहां से निर्विचार शुरू हुआ, वहां से तृप्ति।


तो एक ही काम करो- यही काम करने जैसा है।
और सब करना न करने जैसा है।
और सब किया एक दिन अनकिया हो जाएगा,
एक ही काम करने जैसा है जो कभी अनकिया न होगा।

और तुमने जो किया, मौत छीन लेगी।
एक ही काम ऐसा है जो मौत नहीं छीन पाएगी, अगर तुम कर पाए....
उस काम का नाम ध्यान है।

थोड़ी - थोड़ी घड़ियां निकालने लगो, बैठने लगो।
विचार चलते रहें, चलने दो। देखते रहो शांति से।
न जाओ उनके साथ, न करो उनका विरोध।
न निंदा, न स्तुति।
न कहो कि यह विचार कितना सुंदर आया, न कहो कि यह कहां का दुर्विचार मेरे भीतर प्रविष्ट हुआ!
नहीं कोई निर्णय लो, न्यायाधीश न बनो, साक्षी बने बैठे रहो।
चलने दो यह टैरफिक विचार का, यह राह चलने दो, तुम बैठे रहो।
काले, गोरे, सब तरह के विचार निकलेंगे; बुरे, भले, सब तरह के विचार निकलेंगे।
यह राह है।

इससे तुम इतना भी संबंध मत रखो कि यह मेरा मन है।
तुम्हारा क्या लेना - देना है !
तुम मन नहीं हो, तुम देह नहीं हो,
तुम जरा भीतर से बैठकर इसे देखते रहो।
देखते-देखते, देखते - देखते एक दिन ऐसी घड़ी आएगी.
पहले तो बड़ी कठिनाई होगी,
विचारों पर विचार आते जाएंगे,
जैसे सागर में तरंगों पर तरंगें आती हैं, कोई अंत ही न मालूम होगा,
बड़ा अंधेरा मालूम होगा,
लेकिन घबड़ाना मत।

पनपने दे जरा आदत निगाहोंको अंधेरोंकी
अंधेरे में अंधेरा रोशनीके काम आएगा

न जाने दर्द को दिल अब कहां आराम आएगा
जहां यह उम्र सिर रख दे कहां वह धाम आएगा

अभी कुछ और बढ़ने दे पलक पर इस समुंदर को
तभी तो मोतियों का और ज्यादा दाम आएगा


~~~~~ ओशो ~~~







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