जगाओ
अपने अंदर
सोये पड़े गीत को
Osho
प्रत्येक
मनुष्य एक गीत लेकर पैदा
होता है
लेकिन बहुत थोड़े-से
सौभाग्यशाली लोग हैं
जो उस गीत को गाकर विदा होते हैं।
अधिक गीत अनगाए ही मर जाते हैं।
यही जीवन की पीड़ा है,
यही विषाद है।
जो उस गीत को गाकर विदा होते हैं।
अधिक गीत अनगाए ही मर जाते हैं।
यही जीवन की पीड़ा है,
यही विषाद है।
यही जीवन की चिंता और
संताप है।
जब तक तुम्हारा गीत गाया नहीं गया है, तब तक तुम हो या नहीं बराबर है।
जब तक तुम्हारा बीज नहीं टूटा, तब तक तुम्हारा होना एक आभास मात्र है,
एक छाया-भर,
एक परछाईं!
जिस दिन तुम्हारा गीत प्रकट होगा . . .
और ध्यान रहे, वह तुम्हारा हो!
वह बुद्ध का न हो, महावीर का न हो, कृष्ण का न हो, मेरा न हो--
वह तुम्हारा हो!
और सभी बुद्धों ने यही कहा है।
किसी के गीत दोहराने नहीं हैं।
किसी को भी कार्बन कापी बनकर मर जाना नहीं है।
उससे बड़ा कोई दुर्भाग्य नहीं है।
मूल बनों! अपने को प्रकट होने दो।
खोजो अपने भीतर,
कहां तुम्हारा खजाना दबा है?
तलाशो,
टटोलो!
तुम भी हीरा लेकर आए हो।
परमात्मा ने किसी को भी बिना पाथेय के भेजा नहीं है;
पूरी यात्रा का सारा प्रबंध करके भेजा है।
वह सब दिया है जो तुम्हें जरूरी पड़ेगा। वह सब दिया है जो तुम चाहते हो।
और इतना दिया है जितना तुम कभी चाह नहीं सकते हो।
जब जीवन की संपदा मिलती है तो आश्चर्यचकित होकर यह पता चलता है कि हम तो कौड़ियां मांगते थे और उसने हीरों के ढेर दे रखे हैं।
हम तो कुछ छुद्र की मांग किए बैठे थे,
उसने विराट दे रखा है।
हम तो पदार्थ मांगते थे, परमात्मा स्वयं हमारे भीतर मौजूद है।
सम्राटों का सम्राट् तुम अपने भीतर लिए बैठे हो;
पर सोया पड़ा है,
तुमने जगाया नहीं,
तुमने पुकारा नहीं।
धर्म और कुछ भी नहीं है,
अपने भीतर सोए पड़े गीत को जगाने की प्रक्रिया है।
तुम्हारे मन में,
तुम्हारी समाधि है।
तुम जो-जो बाहर तलाश रहे हो,
तलाशो लाख, पाओगे नहीं।
क्योंकि जिसे तुम बाहर तलाश रहे हो वह तलाश करनेवाले में ही छिपा है।
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