विशेषण शून्यता ही मोक्ष है ।
-ओशो
बंधन
से छूटना है।
मोक्ष का अर्थ क्या होता है ?
सारे बंधनों से छूट जाना।
मोक्ष का अर्थ क्या होता है ?
सारे बंधनों से छूट जाना।
और ध्यान रखना ,
बंधन तुम्हें नहीं पकडे़ हुए है ,
तुम्हीं उन्हें पकडे़ हुए हो।
बंधन तुम्हें नहीं पकडे़ हुए है ,
तुम्हीं उन्हें पकडे़ हुए हो।
एक
आदमी शेख फरीद के पास
आया।
फरीद बडा़ मस्त आदमी था ,
बहुत अलमस्त फकीर था , पहुंचा हुआ सूफी था।
उसके जवाब भी अनूठे होते थे।
फरीद बडा़ मस्त आदमी था ,
बहुत अलमस्त फकीर था , पहुंचा हुआ सूफी था।
उसके जवाब भी अनूठे होते थे।
इस आदमी ने पूछा कि आप तो
पहुंच गए ,
हमें भी कोई रास्ता बताएं ,
ये जंजीरों से हम कैसे छूटें ?
हमें भी कोई रास्ता बताएं ,
ये जंजीरों से हम कैसे छूटें ?
फरीद ने एक नजर उसे देखा
, उठ कर खडा़ हो गया।
पास में ही एक खंभा था , खंभे को जोर से पकड़ लिया
और चिल्लाया बडे़ जोर से
पास में ही एक खंभा था , खंभे को जोर से पकड़ लिया
और चिल्लाया बडे़ जोर से
कि बचाओ , बचाओ ,
मुझे खंभे से बचाओ !
मुझे खंभे से बचाओ !
वह
आदमी भी हैरान हुआ कि
इसको क्या हो गया !
इसको क्या हो गया !
वह भी
उठ कर खडा़ हो गया घबराहट में।
उसने कहा : '
आपको हो क्या गया अचानक ?
भले-चंगे बैठे थे। मैंने प्रश्न क्या पूछा ,
भले-चंगे बैठे थे। मैंने प्रश्न क्या पूछा ,
आप
एकदम पगला गए।
मगर वह सुने ही
न , फरीद एकदम चिल्लाता ही गया।
मुहल्ले के लोग आ
गए। सब खडे़ भौंचक्के से कि
करना क्या !
यह भी क्या गजब की बात कह रहा है -- ' खंभे से छुडा़ओ !
पकडे़ है खुद ही खंभे को।
यह भी क्या गजब की बात कह रहा है -- ' खंभे से छुडा़ओ !
पकडे़ है खुद ही खंभे को।
वह
आदमी बोला : ' आप भी क्या
मजाक कर रहे हैं !
आप खुद खंभे को पकडे़ हैं। '
आप खुद खंभे को पकडे़ हैं। '
फरीद
ने कहा : ' तो फिर आदमी
मूढ़ नहीं है तू।
तो फिर क्या प्रश्न पूछता है ?
वे जंजीरें तुझे पकडे़ हुए हैं ?
तो फिर क्या प्रश्न पूछता है ?
वे जंजीरें तुझे पकडे़ हुए हैं ?
कौन-सी जंजीर
तुझे पकडे़ हुए है ?
बता तो मैं
छुड़ा दूं।
तू खुद जंजीरों को पकडे़ हुए है। '
तू खुद जंजीरों को पकडे़ हुए है। '
लोग
अकडे़ हुए हैं अपनी
जंजीरों पर।
लोग उसको अपना अहंकार का आभूषण समझते हैं।
लोग उसको अपना अहंकार का आभूषण समझते हैं।
जब
अहंकार छोड़ना ही हो
तो
सारे विशेषण छोड़ देने चाहिए।
आदमी होना काफी
है।
अंततः तो आदमी का विशेषण भी छोड़ देना है।
तब चैतन्य होना मात्र काफी है ,
अंततः तो आदमी का विशेषण भी छोड़ देना है।
तब चैतन्य होना मात्र काफी है ,
साक्षी होना मात्र काफी
है।
वही मोक्ष है।
साक्षी
बनो !
मोक्ष
का कुल अर्थ इतना ही होता
है :
हम पर कोई विशेषण न रह
जाएं।
हम विशेषण-शून्य हो जाएं ,
हम विशेषण-शून्य हो जाएं ,
क्योंकि परमात्मा
विशेषण-शून्य है।
निर्गुण है।
हम भी
निर्गुण हो जाएं।
हम निर्गुण हो सकते हैं।
हम निर्गुण हो सकते हैं।
वह हमारा स्वभाव है।
मोक्ष कुछ उपलब्धि नहीं है -
मोक्ष कुछ उपलब्धि नहीं है -
अपने स्वभाव का आविष्कार है।
(उड़ियो
पंख पसार)
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો